पहाड़ की मिट्टी , तनिक लग लन दे
जे धुल तोरे तन पे, तनिक चढ़ लन दे
मैं जानू जे धुप, तोरी काया सताय
जाय खुजलाय, जाय लाल बनाय
पर फिर गरमाए, तोहे खूब लुभाय
इस खिलते सूरज को, तोहे छू लन दे
पहाड़ की मिट्टी , तनिक लग लन दे
मैं जानू के लोगन की बातें, बातन की आवाजें
तोरे लेखन में बाधा बनावें
जा कर के लायो तू पहाड़ में mp3 उपाय
पर जे पत्ते, जे चिड़िया, जे फूल कछु कहना चाहवें
पहाड़ के सन्नाटे को भी कछु कह लन दे
पहाड़ की मिट्टी तनिक लग लन दे
पहाड़ की मिटटी से हठ न कर
जाको रंग न जावे जाड़ों भर
बर्फ में भी तोहे याद दिलावे
तोरी मंद मुस्कान जहाँ घर पावे
ऐसो भावुक रंग अब चढ़ लन दे
पहाड़ की मिट्टी तनिक लग लन दे
— राजीव
नवम्बर ७ , २०१६
मुक्तेश्वर, उत्तराखंड